केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए भूमि कानून से जुड़ा नोटिफिकेशन जारी किया है। अब कश्मीर और लद्दाख में कोई भी भारतीय जमीन खरीद सकेगा। दोनों केंद्र शासित राज्यों में यह कानून तत्काल लागू होगा। इसको लेकर जम्मू में बाहरी राज्यों के लोगों के बीच खुशी है। वे यहां जमीन खरीदना चाहते हैं। जम्मू में बुकिंग भी शुरू हो गई है, लेकिन कश्मीर में अभी इस मुद्दे पर लोग कुछ भी कहने से बच रहे हैं। इसके पीछे वजह है यहां के हालात और मौसम, जो अक्सर बदलते रहते हैं।
दूसरे राज्यों के लोगों के लिए यहां के क्लाइमेट कंडीशन में रहना इतना आसान नहीं है। साथ ही बाहर से यहां आकर काम करने वाले ज्यादातर लोग मजदूरी करते हैं या छोटी दुकान चलाते हैं। उनके पास इतने पैसे भी नहीं है कि करोड़ों रुपए की जमीन या फ्लैट खरीद सकें। दूसरी तरफ यहां के स्थानीय लोगों में नए कानून को लेकर नाराजगी है। उन्हें लगता है कि इस कानून के बाद उनके संसाधनों पर दूसरे का हक हो जाएगा।
बशीर अहमद श्रीनगर के लाल चौक पर कपड़े की दुकान चलाते हैं। वो कहते हैं कि नए कानून से भाजपा को सियासी फायदा भले हो, लेकिन यहां के लोगों में इसको लेकर नाराजगी है। इस कानून से यहां की पहचान और कल्चर को खतरा है। ये नाराजगी कभी भी बाहर आ सकती है। नजीर अहमद अवंतीपोरा के रहने वाले हैं। उन्हें काम के लिए कभी अनंतनाग तो कभी श्रीनगर जाना होता है।
बशीर कहते हैं कि केंद्र सरकार हमें दिन पर दिन कमजोर कर रही है। पहले आर्टिकल 370 को खत्म किया, फिर कहा गया कि जमीन और नौकरियों को लेकर पुराना कानून ही रहेगा, लेकिन अब यहां की जमीन को पूरे मुल्क के लिए खोल दिया गया। इस वजह से यहां के लोगों में नाराजगी है। लोगों को पुलिस की सख्ती का डर है, वरना वो नाराजगी जाहिर करने के लिए बाहर जरूर निकलते।
मोहम्मद इशाक बाजार में किराने की दुकान चलाते हैं। कहते हैं कि अभी इस कानून को जमीन पर जारी होने में भले वक्त लगे, लेकिन सियासत की दुकान चमकने लगी है। इसे चुनावी मुद्दा बनाकर पेश किया जा रहा है। मुख्तार मेडिकल की दुकान चलाते हैं। कहते हैं कि इस कानून का विरोध हो रहा है, लोगों ने अपनी दुकानें बंद कर नाराजगी जाहिर की। वो कहते हैं कि कश्मीर की सियासत हमेशा से उलझन में रही है, यहां हालात कब बदल जाए कोई नहीं जानता।
दूसरे राज्यों से आकर यहां काम करने वाले खुलकर इस मुद्दे पर नहीं बोल रहे हैं। नजीब बिहार के दरभंगा के रहने वाले हैं। गर्मी के दिनों में यहां काम करते हैं और सर्दियों में वापस बिहार लौट जाते हैं। वो नए कानून को लेकर किसी बहस का हिस्सा नहीं होना चाहते हैं। उनके लिए कल भी कश्मीर वैसा ही था, जैसा अब है। उनके लिए घर बनाना और रहना यहां आसान नहीं है। उनके पास इतने पैसे भी नहीं कि जमीन खरीद सकें।
यूपी के रहने वाले फारूख अहमद यहां पिछले कई सालों से सैलून चला रहे हैं। साल के 10 महीने यहां रहते हैं और सर्दियों में घर चले जाते हैं। वो कहते हैं कि मैं किसी बहस में नहीं पड़ना चाहता। मेरी दुकान अच्छी चल रही है। अगर मैं खरीदना भी चाहूं तो दुकान यहां नहीं खरीद सकता और न ही यहां ऐसे हालात हैं।
यूपी के रहने वाले मुताकिम अनंतनाग में पकोड़े की दुकान चलाते हैं। उनकी कमाई अच्छी होती है, दुकान पर भीड़ लगी रहती है। वो किराए की दुकान और किराए के घर में रहते हैं। हमने जब नए कानून को लेकर सवाल किया तो किसी ने भी दिलचस्पी नहीं दिखाई।
कश्मीर के अन्य इलाके जैसे गुलमर्ग और पहलगाम में जमीन खरीदी नहीं जाती है। यहां सरकार लीज पर जमीन देती है, जिसकी कीमत करोड़ों में होती है। इसलिए यहां रेसीडेंशियल कॉलोनी नहीं है। यहां बड़े-बड़े होटल और इंडस्ट्री हैं। इससे 3 किमी दूर टंगमर्ग पर जमीन की कीमत एक करोड़ तक चली जाती है।
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