चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस का कोई कॉन्स्टेबल नहीं दिख रहा था। चालान कटने का डर भी नहीं था। शर्माजी ने स्टॉपलाइन की परवाह नहीं की और कार को आगे बढ़ा दिया। पर वहां क्लोज सर्किट कैमरा (CCTV) लगा था और उसने शर्माजी की हरकत को कैमरे में कैद कर लिया। दो दिन बाद जब चालान घर पहुंचा तो शर्माजी ने माथा पकड़ लिया। उन्हें अब भी समझ नहीं आ रहा था कि जब कोई कॉन्स्टेबल चौराहे पर था ही नहीं, तो यह चालान कैसे बन गया? शर्माजी की तरह सोचने वाले एक-दो नहीं बल्कि लाखों में हैं। उन्हें पता ही नहीं कि यह सब किस तरह होता है? और तो और, यहां ले-देकर मामला भी नहीं निपटा सकते।
इस मामले में हुआ यह कि CCTV से आए फुटेज के आधार पर मशीन पहले तो गाड़ी का नंबर दर्ज करती है। फिर उससे कार के मालिक का पता निकालकर उसे चालान भेजती है। किसी तरह की कोई शंका न रहे, इसलिए वह फोटो भी साथ भेजती है जो कानून तोड़े जाने का सबूत बनता है। यह सब होता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI की वजह से। यहां एक मशीन वही काम करती है, जिसकी उसे ट्रेनिंग दी जाती है।
यदि कोई दूसरा काम करना हो तो उसके लिए दूसरी मशीन बनाने की जरूरत पड़ती है। मशीन को किसी खास काम के लिए ट्रेनिंग देकर तैयार करना ही है- मशीन लर्निंग। जो भी मशीन को सिखाया जाएगा, वह उसे बखूबी करती है। फिर चाहे आप उससे कुछ भी करा लें। इसमें मशीनों को चलाने के लिए इंसानों की जरूरत नहीं के बराबर होती है। साथ ही नतीजे परफेक्ट मिलते हैं।
जब वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग पर काम शुरू किया तो उसमें भी बड़ी समस्याएं आने लगी। मशीन उतना ही काम करती है, जितना उसे लिखकर दिया जाता है। वह दूसरे तरीके समझती ही नहीं थी। तब डीप लर्निंग पर काम शुरू हुआ। इसका फायदा यह हुआ कि मशीन को लिखित में जानकारी देने के साथ ही तस्वीर दिखाकर या ऑडियो सुनाकर भी ट्रेनिंग दी जाने लगी। यह इतना आसान नहीं है, जितना पढ़कर लग सकता है।
सुनने में यह हॉलीवुड की किसी साइंस फिक्शन फिल्म की तरह लगता है, लेकिन दुनियाभर में इस दिशा में बहुत काम हो रहा है और तेजी से टेक्नोलॉजी विकसित हो रही है। दरअसल, इन मशीनों को आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क मॉडल को आधार बनाकर ट्रेनिंग दी जा रही है। इससे ऐसी मशीनें तैयार हो रही हैं, जो बच्चों की तरह दुनिया को देखती हैं। उन्हीं की तरह सीखती है, पढ़ती है, देखती है और सुनती भी है। तब तय करती है कि क्या करना सही होगा।
अब यह मशीन किस भाषा को समझेगी, चीजों को कैसे पहचानेगी, काम कैसे करेगी, समस्या आ जाए तो उससे कैसे निपटेगी, इसकी ट्रेनिंग भी देनी पड़ती है। इसे सिर्फ एक बार बताना पड़ता है और वही से यह समझ जाती है कि क्या करना है और कैसे करना है। यह मशीनें जो जैसा है, उसे उसी रूप में लेती है। यह तो वैसा ही हो गया कि अमेरिका में पैदा हुआ बच्चा वहां की भाषा और रहन-सहन के तौर-तरीके सीखता है और भारत में जन्मा बच्चा भारत के।
इसके बाद भी अगर आपको लग रहा होगा कि यह मशीनें इंसान की तरह सोच सकती हैं तो आप गलत हैं। इंसानी दिमाग किसी चीज को भूल सकता है, यह नहीं भूलतीं। इंसानी दिमाग के मुकाबले इसकी कोई हद नहीं है। न तो यह थकती हैं और न ही बोरियत महसूस करती है। यानी यह मशीनें 99% तक बिना भूले और बिना किसी बोरियत के बार-बार परफेक्ट काम कर सकती हैं। डीप लर्निंग के जानकार कहते हैं कि दुनिया को बड़े बदलाव के लिए तैयार हो जाना चाहिए, जहां ज्यादातर काम मशीनें करती दिखेंगी।
डीप लर्निंग कैसे बदलेगी हमारी जिंदगी
यह आपकी और हमारी जिंदगी को पूरी तरह बदलने वाली है। आप सोच भी नहीं सकते, वहां यह काम करती नजर आ सकती है। कोरोनावायरस महामारी ने जिस तरह पैर पसारे हैं, डॉक्टर भगवान की तरह जान बचा रहे हैं। अब आप कल्पना कीजिए कि यदि इन डॉक्टरों का भगवान बनकर मशीनें आ जाएं तो? यह होगा कैसे?
आप जब सीटी स्कैन कराते हैं तो रिपोर्ट को समझने-पढ़ने में डॉक्टरों को वक्त लग जाता है। अक्सर हमने देखा है कि डॉक्टर समस्या जानने के लिए कई बार स्कैन और रिपोर्ट देखते हैं। डीप लर्निंग वाली मशीन तो एक बार देखेगी और एक्यूरेसी के साथ बता देगी कि समस्या क्या है। इतना ही नहीं, यदि उसे प्रॉपर ट्रेनिंग दी जाए तो वह संभावित बीमारियों और उनसे बचने के तरीके भी बता देगी।
मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग पर पीएचडी कर चुकीं डॉ. भावना निगम कहती हैं कि, ‘यह टेक्नोलॉजी गांवों में बड़ा बदलाव लाने वाली है। आपको पता ही नहीं चलेगा और यह मशीनें ऐसा काम कर देंगी जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की थी। हर साल हजारों हैक्टेयर में फसलें सड़ जाती हैं। यह मशीनें किसानों के लिए वरदान ही साबित होंगी, जब वह पत्तियों में छोटे-से बदलाव को भी पकड़ लेगी और किसान को बता देगी कि फसल पर इसका क्या असर पड़ सकता है। फसल को बचाने के लिए कब और क्या करना चाहिए। दक्षिण भारत में नारियल के पेड़ पर लगे नारियलों की गिनती का काम तो डीप लर्निंग वाली मशीन सिर्फ फोटो देखकर कर देगी।’
यह तो सिर्फ सैम्पल है। आप किसी दुकान पर आपने डीप लर्निंग मशीन को तैनात करें, फिर देखें कि वह क्या-क्या कर सकती है। वह कुछ ही दिनों में बता देगी कि किस सामान को किस शेल्फ में रखने से उसकी बिक्री ज्यादा होती है। कनाडा में नेता भी अब डीप लर्निंग की मदद ले रहे हैं ताकि भविष्य की राजनीति का रुख भांप सके। आपको लगेगा कि यह कोई ज्योतिष हैं तो आप गलत हैं। यह वही काम कर सकती है, जिसके लिए उसे ट्रेनिंग दी जाए।
तीन गुना तेजी से बढ़ रहा है डीप लर्निंग का मार्केट
डेटा एनालिटिक्स फर्म ARK ने Big Ideas 2020 रिपोर्ट बनाई है। यह कहती है कि डीप लर्निंग का मार्केट इंटरनेट की तुलना में 3 गुना तेज है। यह अगले 20 साल में 30 ट्रिलियन डॉलर यानी 2220 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का होगा। वैसे तो डीप लर्निंग, AI का ही एक हिस्सा है, जिस पर 70 साल पहले काम शुरू हुआ था। अब अचानक से आई तेजी की दो वजहें हैं। पहली- क्लाउड आने से भारी-भरकम डेटा को संभालने की सुविधा, दूसरी- GPU.
चीन, सऊदी अरब में दौड़ रहे हैं ट्रक
फ्रंटलाइन ने मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई है- ‘In The Age Of AI’ यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में। इसमें मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग किस तरह काम आसान बना रहा है, इसे बताया गया। आश्चर्य तो तब हुआ जब चीन और सऊदी अरब में बिना किसी मदद के चलने वाले ट्रकों और कारों को दिखाया। फैक्ट्रियों में काम कर रहे यह ट्रक ऑटो ड्राइव मोड में रहते हैं। दुबई में तो ऑटो ड्राइव कारें भी आ गई हैं।
अधिकार श्रीवास्तव डीप लर्निंग पर कंसल्टेंसी चलाते हैं। उनका कहना है कि भले ही कोविड-19 चीन से आया हो, उसने सबसे पहले और बखूबी इसे रोका भी है। इसमें उसकी मदद की है डीप लर्निंग ने। कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग में डीप लर्निंग का इस्तेमाल किया गया। यानी किसी कोरोना पेशेंट के संपर्क में कौन-कौन आया, उस तक पहुंचने में इसकी मदद ली गई। काफी हद तक इसने ही चीन में कोविड-19 को फैलने से रोका, वरना वहां की घनी आबादी को देखते हुए आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हालात कितने बुरे हो सकते थे।"
डीप लर्निंग के प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी ब्रेन टॉय के संस्थापक अमित का कहना है कि अमेरिका और यूरोप में डीप लर्निंग का इस्तेमाल सबसे ज्यादा हेल्थ सेक्टर में हो रहा है। मेंटल हेल्थ में सबसे ज्यादा।
अफ्रीका में खेती और दूध के लिए डीप लर्निंग का प्रयोग
दक्षिण अफ्रीका में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए जानवरों को इंजेक्शन नहीं लगते। वहां डीप लर्निंग मशीनों की मदद ली जाती है। प्रेग्नेंसी में ही दूध का उत्पादन बढ़ाने से जुड़ी जानकारी जुटा ली जाती है। वहां तो किसान भी पैदावार बढ़ाने में डीप लर्निंग का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे उन्हें पता चलता है कि किस समय पर सिंचाई करना चाहिए और कब कितनी खाद डालनी है।
डीप लर्निंग से चल रहे हैं दुनियाभर के जहाज
दुनियाभर में हवाई जहाजों का ट्रांसपोर्ट कंप्यूटरों पर निर्भर है। कौन-सा हवाई जहाज कब, किस रास्ते से गुजरेगा, यात्रियों के सामान को बाहर लाने तक का निर्देश मशीन देती हैं। एयर ट्रैफिक कंट्रोल के लिए भी डीप लर्निंग का इस्तेमाल हो रहा है। किसी बेहद जटिल सिस्टम को चलाने, नई दवा तैयार करने, नए केमिकल तलाशने, माइनिंग से लेकर स्पेस रिसर्च और शेयर मार्केट के लिए एक्यूरेट अनुमान लगाने में भी मशीनें मदद कर रही हैं।
भारत में आंखें बन रहा है डीप लर्निंग एप्लिकेशन
नोटबंदी के बाद दृष्टिहीनों की समस्या बढ़ गई थी। नए 500-2000 के नोट छूकर अंदाजा लगाना कठिन हो रहा था। तब अयान निगम की कंपनी डीपआईऑटिक्स ने 'माई आइज' नाम का एक मोबाइल ऐप बनाया। यह मोबाइल के फ्रंट कैमरे का इस्तेमाल करता है और बता देता है कि नोट कितने का है। सिर्फ नोट ही नहीं बल्कि यह रास्ते में आने वाली हर चीज को देखकर उसके बारे में बता देता है।
डीपआईऑटिक्स ने ही कोविड-19 के लिए भी एक एक्सरे एप्लिकेशन बनाया है। एक्सरे, टेंपरेचर, ऑक्सीजन देखकर यह एप्लिकेशन निमोनिया और कोविड में फर्क बता देता है। महाराष्ट्र सरकार ने इसका इस्तेमाल भी किया है। भारत में ही हेल्थ, फाइनेंस, बैंकिंग, साइबर सिक्योरिटी, एग्रीकल्चर के क्षेत्र में काम कर रहीं मल्टीनेशनल कंपनियां अब डीप लर्निंग मशीनों का इस्तेमाल कर रही हैं।
स्टार्टअप बने, लेकिन भारत में अब भी पहले बड़े प्रोडक्ट का इंतजार
भारत में अभी तक डीप लर्निंग मोबाइल एप्लिकेशन तक ही सीमित रहा है। बीते कुछ समय में तेजी से डीप लर्निंग को लेकर कुछ स्टार्टअप शुरू हुए हैं, लेकिन अब तक भारत में ऐसा कोई प्रोडक्ट नहीं बना, जिसे पूरी दुनिया को दिखाया जा सके। डॉ. भावना निगम का कहना है कि कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में ट्रैसकॉस्ट, बैंकिंग क्षेत्र में एसएलके ग्लोबल जैसी कंपनियां तेजी से उभरी हैं। तीन से चार साल में आपको दुनिया के स्तर पर भारतीय प्रोडक्ट्स के नाम सुनाई देंगे।
...पर सुंदर पिचाई नुकसान भी गिना रहे हैं
गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई का कहना है, बिजली के इस्तेमाल, कैंसर का इलाज, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए डीप लर्निंग पर काम हो रहा है। लेकिन सच यह भी है कि यदि इसके जोखिम से बचने का तरीका नहीं ढूंढा, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। फ्रंटलाइन की डॉक्यूमेंट्री ने ही दिखाया कि चीन में लाखों लोगों की नौकरी जा चुकी है। उनकी जगह अब चीनी फैक्ट्रियों में मशीनें काम कर रही हैं।
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