सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें दावा किया गया है कि 2001 से अब तक उत्तराखंड में आग के कारण 44,000 हेक्टेयर क्षेत्र के जंगल खत्म हो चुके हैं। यह 61,000 फुटबाल मैदानों के बराबर हैं। जंगलों में आग लगने की घटनाओं के पीछे भू-माफिया और लकड़ी माफिया की भूमिका है। इसकी जांच की जानी चाहिए।
याचिका में मांग है कि कुछ अधिकारों के साथ उत्तराखंड के जंगलों को ‘जीवित ईकाई’ घोषित किया जाए। जिससे कि इन्हें नष्ट होने से बचाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिकाकर्ता की दलीलें सुनने के बाद मामले में सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इससे पहले याचिकाकर्ता से और दस्तावेज मांगे हैं। याचिका पर अब अगले सप्ताह सुनवाई होगी।
शीर्ष अदालत में यह जनहित याचिका ऋतुपर्ण उनियाल ने दायर की है। चीफ जस्टिस बोबड़े ने इस याचिका पर सुनवाई करने से पहले याचिकाकर्ता से सवाल किया, ‘आपका मामला केवल उत्तराखंड तक ही सीमित है। ऐसे में आपको हाईकोर्ट जाना चाहिए था।
आप वहां पर क्यों नहीं गए। हम इसे कैसे सुन लें?’ याचिकाकर्ता ने इस पर दलील दी कि 2016 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक आदेश जारी कर राज्य के संपूर्ण एनिमल किंगडम को ‘जीवित ईकाई’ घोषित किया था। इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसलिए वे अब शीर्ष अदालत में आए हैं। इसके बाद अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली।
जीवन की परिभाषा में पशु-पक्षियों का जीवन भी
याचिकाकर्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने ही अपने पहले के फैसलों में ‘जीवन’ शब्द को विस्तारित तौर पर परिभाषित किया है। इसमें पशु-पक्षियों के जीवन सहित सभी प्रकार का जीवन शामिल है। पशु-पक्षियों का जीवन बचाने के लिए जंगल बचाना बेहद जरूरी है। ऐसे में जंगलों को कुछ अधिकारों के साथ ‘जीवित ईकाई’ का दर्जा दिया जाना चाहिए।
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from Dainik Bhaskar /national/news/petition-to-declare-forests-as-living-entity-accepted-in-supreme-court-128089565.html
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