चीन की विस्तारवाद की नीति को बड़ा झटका लग सकता है। दो दिन पहले अमेरिकी संसद में तिब्बत नीति और समर्थन कानून पास हुआ है और अब रविवार से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित सरकार के नेता चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके लिए वैश्विक प्रेक्षक भी तैनात किए गए हैं। दरअसल, चीन को हमेशा से डर रहा है कि तिब्बत में सबसे अहम माने जाने वाले दलाई लामा और भारत मिलकर चीन में अस्थिरता ला सकते हैं।
अब जबकि कोरोना संक्रमण के चलते चीन पहले से ही शक के घेरे में है, बाकी देश भी किसी भी वजह से उसके खिलाफ आक्रामक हो सकते हैं। खासतौर पर अगर भारत अमेरिका का समर्थन करता है, तो ये चीन के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल सकता है।
इधर, तिब्बती 17वीं संसद के लिए अपना सिक्योंगे (निर्वासित सरकार का प्रमुख) चुनने जा रहे हैं। धर्मशाला में पहले भी मतदान होता रहा है। करीब 80 हजार निर्वासित तिब्बती मतदान करेंगे। 55,683 वोटर भारत में और शेष 24,014 वोटर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्राजील समेत कई देशों में रजिस्टर्ड हैं।
संसद की 45 सीटों के लिए 150 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें 10 सीट तिब्बत के प्रदेशों के लिए हैं। इधर, अमेरिका ने तिब्बती नीति और समर्थन कानून पास कर दिया है। इससे तिब्बतियों को अपना धार्मिक नेता (अगला दलाई लामा) चुनने के अधिकार का रास्ता साफ हो गया है। अगर चीन इसमें अड़ंगा डालता है, तो अमेरिका दूसरे देशों की रजामंदी से चीन के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकता है, या उस पर कड़ी आर्थिक पाबंदियां लगा सकता है।
हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में है तिब्बत की निर्वासित संसद का मुख्यालय तिब्बत की निर्वासित संसद का मुख्यालय
हिमाचल के धर्मशाला में है। तिब्बत नीति संस्थान के निदेशक तेनजिन लेक्शे ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव को वहां के नागरिक के मौलिक अधिकारों और कर्तव्य में से एक माना जाता है। ऐसे ही तिब्बतियों के लिए भी यह चुनाव अहम है। इसमें तिब्बत के तीन पारंपरिक प्रांतों- यू-त्सांग, धोते और धोमी में से 10-10 प्रतिनिधि हैं। दो सीट महिलाओं के लिए रिजर्व हैं।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar /local/delhi-ncr/news/front-will-open-against-china-voting-begins-to-elect-a-government-in-exile-in-dharamshala-after-the-us-parliament-passes-tibet-policy-128085977.html
No comments:
Post a Comment