आज की पॉजिटिव कहानी शुरू करने से पहले मैं आपको इसके तीन किरदारों से मिलाता हूं। कोरोना के इस दौर में जब लोग दूरियां बना रहे हैं, ये किरदार बड़ी लड़ाई जीतने की मिसाल पेश करते हैं। इनमें से पहले हैं 48 साल के कोरोना मरीज, जिनके दोनों फेफड़े इतने डैमेज हो गए थे कि उंगलियां तक नहीं हिला सकते थे, पर जीने की इच्छा बेजोड़ थी। दूसरी एक महिला हैं, जिनके पति ब्रेन डेड हो गए। उम्र महज 31 साल थी। पहाड़ सा दुख पर मदद करना नहीं छोड़ा। तीसरा और आखिरी किरदार एक डॉक्टर और उनकी टीम जिसने कोरोना के खतरे के बीच सबसे मुश्किल ऑपरेशन्स में से एक को अंजाम दिया।
आइए अब कहानी की तरफ चलते हैं। दिल्ली के 48 साल के बिजनेसमैन को कोरोना हो गया। उन्हें गुड़गांव के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। हालत इतनी बिगड़ी की वेंटिलेटर पर डालना पड़ा। एक महीने वेंटिलेटर पर रहने के बाद भी ऑक्सीजन लेवल गिर रहा था। हालत नहीं सुधरी तो 20 जुलाई को एयरलिफ्ट कर चेन्नई के एमजीएच हेल्थ केयर अस्पताल ले जाया गया।
तब ऑक्सीजन सेचुरेशन 60% तक पहुंच चुका था। सेहतमंद आदमी में यह 95 से 100% के बीच होता है। मरीज हाथ-पैर तो क्या, उंगलियां तक नहीं हिला पा रहे थे। सिर्फ आंखों के इशारे से बातें कह पाते थे। हॉस्पिटल के चेयरमैन और हार्ट-लंग ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के हेड डॉ. केआर बालाकृष्णन की टीम ने उन्हें इक्मो सपोर्ट पर डालने का फैसला किया।
तब शुरू हुई डोनर की तलाश
जब मौत का खतरा 90% तक होता है और वेंटिलेटर से भी फायदा होता नहीं दिखता तो मरीज को इक्मो सपोर्ट दिया जाता है। इक्मो सपोर्ट देने के बाद ऐसे मरीज दो-तीन हफ्ते में रिकवर हो जाते हैं। ऐसा नहीं होने पर लंग्स ट्रांसप्लांट की नौबत आती है। इस मरीज के साथ भी ऐसा ही हुआ। सुधार होता ना देख लंग्स डोनर की तलाश शुरू हुई।
एक महिला आई मदद के लिए...
एक महिला जिनका 31 साल का पति ब्रेन डेड हो चुका था, उन्होंने दुख की घड़ी में भी बड़ा फैसला किया। पति के दिल, फेफड़े, लिवर और दोनों हाथ दान करने का फैसला। फेफड़े दिल्ली के बिजनेसमैन के काम आए। दोनों हाथ मुंबई की एक महिला को प्रत्यारोपित किए जाएंगे, जो 2014 में घाटकोपर रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे में हाथ खो चुकी है।
33 दिन इक्मो में रहने के बाद हुआ ट्रांसप्लांट
डॉ. बालाकृष्णन ने दैनिक भास्कर को बताया कि 20 जुलाई को दिल्ली के कोरोना मरीज को चेन्नई लाया गया। उसके बाद 33 दिन तक वो इक्मो में रहे। इस दौरान उनके हाथ-पैर में मूवमेंट शुरू हो गया था, लेकिन उनके लंग्स की हालत खराब थी। एक हफ्ते पहले डोनर मिला। इसके बाद डॉ. बालाकृष्णन और उनकी टीम ने लंग्स ट्रांसप्लांट का फैसला किया।
डॉ. बालाकृष्णन ने कहा कि ऑपरेशन कामयाब रहा। मरीज को दिया जा रहा इक्मो सपोर्ट भी हटा लिया गया है। अब तो वेंटिलेटर भी हटा दिया गया है। वो खुद सांस ले पा रहे हैं। हमें उम्मीद है कि वो जल्द घर जा पाएंगे।
कोरोना संक्रमित लंग्स का ऑपरेशन सबसे बड़ी चुनौती
डॉ. बालाकृष्णन पहले कई लंग्स ट्रांसप्लांट कर चुके हैं, लेकिन किसी कोरोना संक्रमित के लंग्स ट्रांसप्लांट का ये पहला मौका था। डॉ. बालाकृष्णन कहते हैं कि कोरोना संक्रमित लंग्स का ऑपरेशन करने वाली पूरी टीम को खतरा होता है। भले मरीज कोविड निगेटिव हो चुका है, लेकिन जब आप छाती खोलकर लंग्स निकालते हैं तो किसी को पता नहीं उसकी वजह से वायरस फैल सकता है या नहीं। लेकिन, देश के लिए ये बड़ी उपलब्धि है। किसी कोरोना संक्रमित का ऐसा ऑपरेशन अब तक सिर्फ चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया जैसे कुछ देशों में ही हुआ है। अब भारत भी इस लिस्ट में शामिल हो गया है।
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