हैदराबाद में रहने वाली माधुरी (परिवर्तित नाम) 5 माह की प्रेग्नेंट हैं। एक दिन वो अपनी बहन से फोन पर बात कर रहीं थीं तो पति ने उनका फोन छुड़ा लिया और चेक करने लगा कि किससे बात कर रही है। फिर माधुरी से फोन ले ही लिया गया। पहले उसके साथ मारपीट होती थी, लेकिन उतनी नहीं जितनी लॉकडाउन में हुई।
पति अच्छी कंपनी में नौकरी करता है, लेकिन पत्नी पर शक करता है। इसी कारण उससे फोन छीन लिया। मारपीट करने लगा। एक दिन माधुरी ने ये पूरी बात चिट्ठी में लिखकर घर के सामने वाली मेडिकल स्टोर पर दे दी। जिसमें उसकी बहन का नंबर भी लिखा था। मेडिकल ऑनर ने बहन के नंबर पर कॉल किया और पूरी बात बताई।
बहन ने पुलिस में शिकायत कर दी। पुलिस अगले दिन उसके घर पहुंची लेकिन ससुराल वालों के दबाव के आगे माधुरी कुछ नहीं कह पाई और उसने इस बात से भी इनकार कर दिया कि उसने कोई शिकायत करवाई है। माधुरी की बहन ने महिलाओं के लिए काम करने वाले एनजीओ इनविजिबलस्कार्स में पूरी बात बताई, ताकि उनकी बहन की काउंसलिंग हो सके। हालांकि, माधुरी अभी ससुराल में ही है, इसलिए उसकी काउंसलिंग भी नहीं हो पा रही।
लॉकडाउन में घरेलू हिंसा की माधुरी की कहानी महज एक बानगी है। मामले किस तरह बढ़े हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नेशनल कमीशन फॉर वुमन को 25 मार्च से 22 अप्रैल के बीच 250 घरेलू हिंसा की शिकायतें मिलीं। मई में घरेलू हिंसा की 392 शिकायतें मिलीं, जबकि पिछले साल मई में 266 शिकायतें मिलीं थीं।
इसी तरह सायबर क्राइम की 73 शिकायतें मिलीं, जो पिछली मई में 49 थीं। रेप और शारीरिक शोषण की शिकायतों में 66 परसेंट की कमी आई है, इसका आंकड़ा 163 से 54 पर आ गया। आंकड़ों से साबित होता है कि लॉकडाउन के पहले फेज में घरेलू हिंसा के मामले बढ़ गए थे।
महिलाओं के लिए काम करने वाले एनजीओ का भी यही कहना है। इनविजिबल स्कार्स की फाउंडर एकता विवेक वर्मा कहती हैं, लॉकडाउन के पहले फेज में हमारे पास हर हफ्ते दो से तीन मामले घरेलू हिंसा के आए। अधिकतर महिलाएं कॉल नहीं कर पा रहीं थीं, क्योंकि वे निगरानी में थीं। इसलिए फेसबुक पर मदद के लिए बहुत मैसेज आ रहे थे। एकता कहती हैं, हिंसा सिर्फ महिलाओं के साथ ही नहीं हुई बल्कि पुरुषों के साथ भी हुई है।
पिछले हफ्ते ही नागपुर से एक 28 साल के लड़के का कॉल आया था। जिसे उसकी ही मां और बहनों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था, क्योंकि लड़के की नौकरी छूट गई थी। उसके पास कुछ काम नहीं था। वो पढ़ा भी 12वीं तक ही है। नौकरी जाने के बाद जब वो दिनभर घर में मां, बहनों के साथ रहने लगा तो उसे ताने सुनाए जाने लगे और वो दिमागी तौर पर बेहद परेशान हो गया।
उसने हमारे पास कॉल किया था, तो हमने उसे अलग हॉस्टल में रखने का प्लान बनाया है। तीन महीने तक एनजीओ उसका खर्चा उठाएगा। उसकी काउंसलिंग करवाई जाएगी। उसे ट्रेनिंग दी जाएगी। ताकि वो कोई गलत कदम न उठाए और धीरे-धीरे फिर कुछ काम शुरू करे।
आखिर लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के मामले बढ़े क्यों? इस सवाल के जवाब में एकता कहती हैं, जो लोग बेरोजगार हुए हैं, वे अपना गुस्सा घर में निकाल रहे हैं। जो नशे के आदी हैं, वे शराब पीकर घर में हिंसा कर रहे हैं। हालांकि पीड़ित अधिकतर महिलाएं ही हैं।
दिल्ली की रेखा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्हें सुसराल वाले पिछले दो साल से प्रताड़ित कर रहे हैं। दहेज की मांग और मारपीट करते हैं। कोर्ट में केस चल रहा है। रेखा अपने ससुराल में ही रहती हैं। लॉकडाउन लगते ही उनकी सास और बेटा बहू को घर में अकेला छोड़कर चले गए। घर का सब जरूरी सामान भी साथ ले गए।
अब पिछले करीब पांच माह से रेखा अपने दो बच्चों (एक तीन साल, दूसरा डेढ़ साल) के साथ पति के घर में अकेले रह रही हैं, उनकी मदद करने वाला कोई नहीं। वे कहती हैं मेरी मां की कैंसर से डेथ हो चुकी है। मेरे पास खाने-पीने तक का इंतजाम नहीं था। वो तो कुछ एनजीओ से मदद मिली और लॉकडाउन का टाइम जैसे-तैसे निकला।
कहती हैं पुलिस को कॉल करो तो वो बोलते हैं कोर्ट जाओ। कोर्ट में अभी तक मामला पेंडिंग है। पति की नौकरी चल रही है, लेकिन वे मुझे पैसे नहीं देते। एकता के मुताबिक, हिंसा तो पहले से ही हो रही थी लेकिन लॉकडाउन में यह बढ़ गई।
एक सर्वे के मुताबिक, 86 फीसदी घरेलू हिंसा के मामले में महिलाओं को मदद ही नहीं मिलती और 77 फीसदी मामले ऐसे होते हैं, जिनमें वे किसी से घटना का जिक्र ही नहीं करतीं।
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