झारखंड की राजधानी रांची से करीब 158 किलोमीटर दूर पलामू जिले में एक गांव है हरिहर गंज। इस गांव में रहने वाले दीपक इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर पिछले चार साल से स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं और हर साल करीब 40 लाख रु कमा रहे हैं। पहली बार 2017 में इन्होंने लगभग तीन एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती की। तब दीपक को बारह लाख रु की बचत हुई थी।
दीपक बताते हैं, “मैंने हरियाणा में पहली बार स्ट्रॉबेरी देखी था, मेरे लिए यह एकदम नई चीज थी। मैंने जानकारी जुटाई और फिर हिम्मत करके अपने गांव में खेती शुरू की। घर-परिवार से लेकर आस-पड़ोस सब कहते थे कि गलत कर रहे हो। नौकरी छोड़ के खेती क्यों कर रहे हो। बर्बाद हो जाएगा। उस साल मुझे सारे खर्चे काटकर 12 लाख रुपए की बचत हुई थी।
24 साल के दीपक अपने परिवार के साथ गांव में ही रहते हैं। वो कहते हैं कि दिल्ली जैसे बड़े शहर से लौटकर पलामू के एक छोटे से गांव में रहने का फैसला करना आसान नहीं था। दिमाग में हजार सवाल थे। कैसे होगा? क्या सब ठीक से होगा? नुकसान हुआ तो फिर... आदि, आदि।
दीपक बताते हैं, 'मेरे पिता जी नहीं हैं। दादा ने परवरिश की। पढ़ाई पूरी करने के कुछ ही दिन बाद वो भी गुजर गए। मैं भाई में अकेला हूं। घर में मां थी। मुझे नौकरी के लिए बाहर आना पड़ा। 2017 में शादी हो गई। जहां काम करता था वहां बहुत दबाव रहता था। मैं पूरी मेहनत से काम करता था लेकिन कोई खुश नहीं था। मैं भी हंसना भूल गया था। इन सभी वजहों से मैं लौटा और खेती शुरू की।”
2017 में पहली बार लगभग साढ़े तीन एकड़ जमीन पर खेती करने के बाद दीपक ने अगले ही साल यानी 2018 में 6 एकड़ और 2019 में 12 एकड़ जमीन लीज पर लेकर स्ट्रॉबेरी की खेती की। सितम्बर से अप्रैल के बीच उगाए जाने वाले इस फल की मांग हर तरफ रहती है। दीपक ने बताया, ‘‘स्ट्रॉबेरी पटना, रांची, कोलकाता, सिलिगुड़ी तक जाती है। मार्केट की कोई दिक्कत नहीं है। जब मैं पहली बार स्ट्रॉबेरी उपजा रहा था तो सबसे बड़ा सवाल यही था। बेचेंगे कहां? इतना स्ट्रॉबेरी कहां खपाएंगे? लेकिन ये सवाल जल्दी ही खत्म हो गया। स्ट्रॉबेरी की मांग रहती है। मेरे यहाँ दूर-दूर से ऑर्डर आते हैं। मार्केट की चिंता नहीं रहती।”
2019 में दीपक ने 12 एकड़ में स्ट्रॉबेरी की खेती की थी। फरवरी के आखिर में लॉकडाउन लग गया और इस वजह से दीपक के लगभग 19 लाख रुपए अभी भी मार्केट में फंसे हुए हैं। वो बताते हैं, “कोरोना की वजह से परेशानी हुई। फरवरी, मार्च और आधा अप्रैल तक स्ट्रॉबेरी बहुत निकलता है। आप समझिए कि अप्रैल में ये खत्म हो जाता है। इसी समय लॉकडाउन लग गया। माल जाना बंद हो गया। कुछ दिन बाद जाना शुरू भी हुआ तो सब उधार। इस सब के बाद भी मुझे 40 लाख रुपए की बचत हुई। अगर लॉकडाउन नहीं लगता तो अच्छी कमाई होती।”
वो कहते हैं, 'स्ट्रॉबेरी में हर दिन 60 मजदूर लगते हैं। बीस ऐसे लोग हैं जिन्हें मैंने ट्रेनिंग दी है और अब वो मेरे यहां काम करते हैं। इन्हें तो हम हर महीने दस हजार रुपए देते हैं। इनका खाना-पीना और सोना-रहना भी हमारी जिम्मेदारी है। इसके अलावे हर दिन दिहाड़ी पर महिलाएं आती हैं। सुबह नौ बजे आती हैं और शाम में पांच बजे जाती हैं। इन्हें हम रोज का दो-तीन सौ देते हैं। दीपक की प्रगति को देखकर इलाके के दूसरे कई नौजवान भी इस काम को अपनाना चाह रहे हैं।
हमने दीपक से ये भी पूछा कि अगर आज कोई व्यक्ति एक एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती करना चाहे तो उसे कितना खर्च करना होगा और इस काम में रिस्क कितना है? इस सवाल के जवाब में दीपक का कहना है कि खेती में ही रिस्क है। बिना रिस्क के खेती नहीं हो सकती। वो बताते हैं, “रिस्क तो है। अब इसी बार का देखिए। हमने खेत तैयार करवा रखी थी। इसके बाद बारिश हो गई इस वजह से फसल लगाने में देरी हो जाएगी। कहने का मतलब कि रिस्क तो है। रही बात खर्चे की तो कुछ साल पहले तक एक एकड़ में दो से सवा दो लाख का खर्च आता था। अब एक लाख में हो जाता है।
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