देश के सबसे बड़े डिजिटल पेमेंट और फाइनेंशियल सर्विस एप पेटीएम 19 सितंबर को उस वक्त चर्चा में आ गया, जब गूगल ने प्लेस्टोर से उसे हटा दिया। हालांकि, 30 करोड़ से अधिक यूजर और 70 करोड़ से अधिक ट्रांजेक्शन रोज करने वाले एप की कुछ घंटों में ही प्लेस्टोर पर वापसी भी हो गई। दैनिक भास्कर ने पेटीएम के फाउंडर-सीईओ विजय शेखर शर्मा से बात की। उनका मानना है कि गूगल-फेसबुक जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर देश में अंकुश जरूर होना चाहिए। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश...
सवाल- आपको लगता है कि आपके एप को गूगल द्वारा विशेष रूप से टारगेट किया गया था?
जवाब- मुझे तो यह समझ में नहीं आता कि किस पॉलिसी के तहत उन्हें ऐसा लगा कि यूपीआई कैश बैक देने का जो हमारा प्रोग्राम है, वह गैम्बलिंग है। गैम्बलिंग बता कर फाइनेंशियल एप की विश्वसनीयता को गिरा दिया। हमारे ऊपर लगे यह गलत और झूठे आरोप हैं। आप (गूगल) क्लेम करते हो कि चार-पांच बार बात की है। जबकि सुबह ही कॉल किया कि अपनी मेल देखो- हमने कुछ कर दिया है, इस तरह तो हमें बताया गया। हमें इस बात की कोई भी वार्निंग नहीं दी कि हम एप हटा रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण, दुर्भावनावश, बिजनेस पर अटैक कह सकते हैं।
सवाल- गूगल की क्या दुर्भावना हो सकती है?
जवाब- सबसे बड़ी बात क्या है कि उनके एप में भी यही सब चीजें चल रही होती हैं। उन्होंने जो ई-मेल भेजा उसमें उन्होंने हमें लिखकर दिया कि आप जो भुगतान करते हो उसके बदले में स्टीकर मिलता है। अब देखिए कि पेमेंट का एप है, तो पेमेंट नहीं करेगा तो क्या करेगा? यह कैसे जुआ हो सकता है? ऐसा नहीं है कि हमने यह अभी शुरू किया है या नया है। हम कैश बैक देते रहे हैं। हमने भी जैसे गूगल पे में स्टीकर आते हैं, वैसे ही दिए हैं।
सवाल- ऐसी डी-लिस्टिंग उन कंपनियों को कैसे प्रभावित करती है जिनका व्यवसाय एप पर ही चलता है?
जवाब- हम हर दिन लाखों ग्राहक जोड़ते हैं, एप से हटने से नए कस्टमर आने बंद हो गए। बहुत सारे हमारे ग्राहक भ्रमित हो गए। किसी ने अफवाह चला दी कि हमारा एप निकाल दिया है और पैसे निकाल लो। इससे समस्या और बड़ी हो गई। जो कंपनियां अपना बिजनेस मॉडल एप के ऊपर चलाती हैं, उनको यह समझ लेना चाहिए कि आप अपना व्यवसाय भारत के नियम कानून के हिसाब से कर रहे हैं तो उनकी नजर में यह पर्याप्त नहीं हैं। ये हमारे देश के सुपर रेग्युलेटर हो गए हैं। ये बड़ी टेक जाॅइंट कंपनियां बताएंगी कि यहां का बिजनेस कैसे चलेगा? यही सबसे बड़ी समस्या है।
सवाल- क्या वह असर अभी भी जारी है?
जवाब- डिजिटल भारत के राज की चाबी देश के अंदर नहीं, कैलिफोर्निया में है। हमने 20 हजार करोड़ रुपए देश के डिजिटल इंडिया में निवेश किए हुए हैं। गूगल पे हमारे बाद आया है देश में। गूगल पे उस अपॉर्चुनिटी पर आया जो भारत में हमारे एप ने बनाई। अब हमारे एप को खत्म करने के तरीके ढूंढ़ रहे हैं। यह हमारे एप का मामला भर नहीं है बल्कि भारत की डिजिटल आजादी का भी सवाल है।
सवाल- आपका एप अन्य सभी एप से कैसे अलग है, क्या सेवाएं उपलब्ध हैं?
जवाब- हमारे एप की शुरुआत हुई थी कि आप अपने वॉलेट से पेमेंट कर सकते हैं- जैसे बिजली के बिल, मोबाइल फोन और अन्य भुगतानों का। हमारा एप एक फाइनेंशियल इन्क्लूजन की सेवा है, जिन लोगों के पास बैंक सेवा नहीं थी उनके पास हम एक पेमेंट का तरीका लेकर गए फिर हम जीराे कॉस्ट अमाउंट वाला बैंक अकाउंट लेकर गए। हम वेब सॉल्यूशन, इंश्योरेंस, लोन आदि की सुविधा दे सकते हैं। वॉलेट सिस्टम डाला, अगर बैंक में पैसे हैं आप उनको ट्रांसफर कर लीजिए जिससे कि आपको कॉन्फिडेंस रहे। वॉलेट सिस्टम किसी और एप के पास नहीं है।
सवाल- गूगल के पास एक भुगतान एप भी है। क्या आपको लगता है कि वे अपनी सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए आपसे भेदभाव किया?
जवाब- जी, बिल्कुल ऐसा है। हमारा जो प्रतिस्पर्धी है, वह हमारे विरुद्ध अपनी सुपर पॉवर से खेल रहा है। भारत में एप का बिजनेस वाली कंपनियों को यह अवश्य समझ लेना चाहिए कि जब उनका बिजनेस बड़ा होगा तब वे आगे जाकर गूगल आदि टेक्नो जाइंट कंपनियों से अवश्य परेशान होंगे। मेरा मानना है कि हमारी मौजूदा सरकार ऐसी सरकार है जो इसको बचा सकती है क्योंकि इन्होंने डिजिटल को कोर एजेंडा बनाया है। प्रधानमंत्री मोदी जी फेसबुक के मुख्यालय भी गए, कभी भी जीरो रेटिंग इस देश ने परमिट नहीं की। मुझे पूरा भरोसा है कि देश के एप ईकोसिस्टम जो बन रहा है उसकी चाबी बाहर तो सरकार नहीं जाने देगी।
सवाल- गूगल बड़े पैमाने पर काल्पनिक खेलों को भी बढ़ावा देता है और बड़े पैमाने पर राजस्व कमाता है। क्या आप दूसरों को भी ऐसा करने से रोकना गलत है?
जवाब- गूगल तो ऐसी मशीनरी है कि जो रास्ते में आए उसको दबाते जाओ। जिस तरह का पैसा मिले उसे काट लो। सर्च इंजन में तो एड लगा है ऐसा लोगों ने ट्वीट किया, तो क्या सर्च इंजन बंद किया गूगल ने? वहां तो आप एड लगाते हो और जब हमारे एप पर एड लगता है तो आप कहते हैं कि गैम्बलिंग सेशन है। इससे शर्मनाक बात नहीं हो सकती।
सवाल- क्या भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए?
जवाब- न सिर्फ कॉम्पीटिशन कमीशन बल्कि भारत सरकार को भी आगे आना चाहिए। भारत सरकार को कहना चाहिए कि आप यहां पर आईए और आप जो दूर से कंट्रोल करके अपनी चाबियां चलाते हो वह नहीं होगा बल्कि अपनी चाबियां (कंट्रोल) देश में ही रखवानी चाहिए। यूपीआई चलाने में देश की मर्जी नहीं है बल्कि गूगल की मर्जी है। आज तो उन्होंने हमारा एप बंद कर दिया अब वो किस कारण से किसका एप बंद करें उनकी मर्जी। भारत सरकार कर के ऊपर प्रयास कर रही है लेकिन इसके साथ अविलंब रूप से हमारी टेक्नोलॉजी को कंट्रोल करने वाली कंपनियों पर भी नियंत्रण करे।
सवाल- क्या आपको लगता है कि भारत को एक ऐसी संस्था की जरूरत है जो सही मायने में नई अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप इकोसिस्टम का समर्थन करती हो?
जवाब- यह बहुत जरूरी बात है। हमारी देश में कार्य करने वाली ऐसी संस्थाएं जो विदेशी कंपनियों के माऊथपीस बने हुए हैं वो हमारे लिए ज्यादा बड़ी समस्या है। इस देश को ऐसे संगठन की आवश्यकता है जो भारतीय टेक्नॉलाजी कंपनियों को रिप्रजेंट करे।
सवाल- भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिग्गजों द्वारा इस तरह के कदमों को कैसे लड़ सकती हैं जिनके पास बड़े पैमाने पर धन भी है?
जवाब- छोटा कभी जीतता-हारता नहीं है, बल्कि संगठन में शक्ति है और सरकार में हमारा भरोसा है। जब हम साथ में मिलकर आएंगे तब देश ही नहीं दुनिया भी बदलती है। जब एक व्यक्ति के साथ ऐसा हो रहा है जो सबके साथ होना संभव है। आप अगर यूट्यूब या फेसबुक यूज नहीं करोंगे तो ऐ पैसा कैसे बनाएंगे? हम इस देश का विकास चाहते हैं देश में निवेश चाहते हैं। ये कंपनियां देश से पैसा ले जाती हैं निवेश कहां करती हैं?
सवाल- क्या आपको लगता है कि इस तरह की रणनीति सरकार की आत्मनिर्भर भारत पहल को प्रभावित करती है?
जवाब- यह समस्या अकेले हमारे एप की नहीं है। यह समझने की बात है कि स्टार्टअप इंडिया, आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल और टेक्नोलाॅजी इन सबको कौन कंट्रोल करता है। आज हमारे एप की बात है कल किसी सरकार विभाग या विंग की हो सकती है। अब तक दसियों स्टार्टअप्स के फाउंडर हमसे बात कर चुके हैं कि हमको भी फोर्सफुली बंद किया।
सवाल- बड़ी टेक कंपनियां ब्रेन-ड्रेन का कारण, यहां से पैसा भी ले जाते हैं
जवाब- शर्मा ने कहा कि बड़ी टेक कंपनियां जैसे गूगल और फेसबुक देश से 30 से 35 हजार करोड़ रुपए राजस्व कमाती हैं और टैक्स देती हैं जीरो। ये कंपनियां देश के बिजनेस के ऊपर अपनी धौंस जमाती हैं। इन कंपनियों को देश में पूरा-पूरा टैक्स जमा कराना चाहिए। नौकरी अमेरिका में देते हैं। ये लोग ब्रेन ड्रेन और हमारे यहां से पैसा ले जाने का कारण हैं। बिजनेस पर धौंस जताते हैं कि तुम्हारा भविष्य हम तय करते हैं, तुम कुछ नहीं हो।
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