Tuesday, August 25, 2020

भारत में 'लर्निंग पॉड' मॉडल के जरिए स्कूलों को दोबारा खोला जा सकता है, अभी ये अमेरिका में चल रहा है; जानिए क्या है ये मॉडल

देश में कोरोनावायरस के कारण बंद स्कूलों को फिर से खोलने के लिए विचार किया जा रहा है। इसका ऐलान अनलॉक-4 में संभव है, जो 1 सितंबर तक आ सकता है। ऐसे में 'लर्निंग पॉड' मॉडल की चर्चा है, जिसे स्कूलों में सोशल डिस्टेंसिंग के लिए अपनाया जा सकता है।

लर्निंग पॉड शब्द कुछ समय पहले ही आया है, इसके तहत लोग भरोसेमंद साथियों को चुनकर एक समूह तैयार करते हैं। इस समूह में बाहर के किसी भी व्यक्ति को आने की अनुमति नहीं होती। इसी मॉडल को अमेरिकी स्कूल भी अपना रहे हैं। वे बच्चों के लिए लर्निंग पॉड्स तैयार कर रहे हैं। इन पॉड्स में कई बच्चे एक साथ पढ़ाई कर करते हैं। आइए लर्निंग पॉड को और समझते हैं..

  • क्या हैं लर्निंग पॉड्स?
  1. एक साथ होगी पढ़ाई: संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए डिजिटल डिवाइसेज के जरिए घर से पढ़ाई कर रहे बच्चे लर्निंग पॉड्स में एक साथ पढ़ाई कर सकेंगे। एक इलाके या शहर में रहने वाले पैरेंट्स अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए नजदीकी स्कूल में भेज सकेंगे।
  2. बनेंगे छोटे ग्रुप्स: 'नैनो स्कूल' या 'माइक्रो स्कूल' कहे जा रहे लर्निंग पॉड्स के तहत माता-पिता अपने बच्चों के लिए छोटे-छोटे समूह तैयार कर सकते हैं। इन ग्रुप्स में करीब 10 बच्चे शामिल हो सकते हैं। इससे बड़ी जगह और कम बच्चों की संख्या के साथ सुरक्षित दूरी बनाए रखना भी मुमकिन होगा।
  3. ट्यूटर हायर करेंगे माता-पिता: फिलहाल अमेरिका में चल रहे लर्निंग पॉड्स में शामिल बच्चों के परिवार वाले एक ट्यूटर को हायर कर रहे हैं। इसका चुनाव वे टीचर की योग्यता को देखकर कर रहे हैं। इसके अलावा कई प्राइवेट कंपनियों ने भी इस आइडिया को अपनाते हुए माइक्रो स्कूलों की शुरुआत की है। वे यह सर्विसेज पैरेंट्स और अध्यापकों को उपलब्ध करा रहे हैं।

पैरेंट्स और बच्चों के लिए यह आइडिया क्यों फायदेमंद है?

  • बच्चों का मेंटल प्रेशर दूर होगा

एक्सपर्ट्स के मुताबिक बच्चे काफी समय से अपने स्कूल रुटीन और साथियों से दूर हैं। यह दूरी उन्हें मानसिक तौर पर भी परेशान कर रही है। अहमदाबाद में साइकैट्रिस्ट और काउंसलर डॉ. ध्रुव ठक्कर के मुताबिक, बच्चे अपने साथियों के साथ मुलाकात नहीं कर पा रहे हैं और यही चीज उन्हें सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है।

बच्चों में सहनशीलता भी खत्म हो रही है। ऐसे में लर्निंग पॉड्स में बच्चों को अपने साथियों के साथ पढ़ाई, बातचीत और सुरक्षित दूरी के साथ मस्ती करने का मौका मिलेगा। यह उनकी एजुकेशन के साथ-साथ मेंटल हेल्थ के लिए भी फायदेमंद होगा।

  • पढ़ाई का नहीं होगा नुकसान

अब जब लर्निंग पॉड्स में बच्चे किसी ट्यूटर की मदद से पढ़ाई कर रहे हैं तो इससे माता-पिता को भी काफी फायदा होगा। इससे पहले क्लासेज के दौरान अगर बच्चे को कोई डाउट है तो उन्हें पैरेंट्स पर निर्भर रहना होता था। कई बार माता-पिता भी बच्चे की दिक्कत को सुलझा नहीं पाते थे। ऐसे में पढ़ाई का काफी नुकसान होता था।

  • अपने काम पर फोकस कर सकेंगे पैरेंट्स

कई बच्चों को खास देखभाल की जरूरत पड़ती है। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान माता-पिता को भी उनके साथ मौजूद होना पड़ता था। बच्चे की लंबे एजुकेशन में शामिल होने वाले पैरेंट्स का काम भी प्रभावित होता था। ऐसे में उन्हें आराम मिलेगा और वे अपने काम पर फोकस कर पाएंगे।

इससे क्या कोई नुकसान हो सकता है?

  • स्कूल बंद होने के कारण धीमी हुई एजुकेशन की रफ्तार को बढ़ाने का काम तो लर्निंग पॉड्स करेंगे, लेकिन महंगे होने के कारण कई बच्चे फिर से पढ़ाई में पीछे हो जाएंगे। अमेरिकी में इन पॉड्स की फीस 30 डॉलर (2 हजार रुपए) से लेकर 100 डॉलर (7 हजार रुपए) है। हालांकि एक पॉड में जितने ज्यादा बच्चे होंगे, उतना ही कम खर्च आएगा, क्योंकि टीचर को दी जाने वाली फीस बच्चों की संख्या के आधार पर बांट दी जाएगी।
  • इसके अलावा टीचर्स भी लर्निंग पॉड्स को लेकर उत्साहित हैं। अलजजीरा के मुताबिक, ऑरीगॉन में रहने वाली क्रिस्टल लूकस 10 साल से टीचिंग कर रही हैं और वे पॉड इंस्ट्रक्टर बनने की प्लानिंग कर रही हैं। उन्होंने बताया कि वे इसके लिए उत्साहित हैं और 8 बच्चों के समूह को हफ्ते में तीन बार पढ़ाने के लिए वे 500 डॉलर (37 हजार रुपए) प्रति दिन चार्ज करने के बारे में विचार कर रही हैं।

लर्निंग पॉड क्या भारत में संभव है?

  1. राजस्थान के उदयपुर स्थित गीतांजली हॉस्पिटल में साइकोलॉजिस्ट असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं कि यह भी एक तरह की नैनो स्कूलिंग ही है। लर्निंग पॉड्स भारत में भी ट्रेंड में आ सकते हैं और यह बच्चे की ग्रोथ के लिए अच्छा है।
  2. जवाहर नवोदय विद्यालय में म्यूजिक टीचर संजय भट्ट इसे अच्छा कॉन्सेप्ट मानते हैं। इतना ही नहीं वे इसे जरूरी भी बताते हैं। उन्होंने कहा "इससे बच्चे को फायदा होगा, क्योंकि इससे उसकी थोड़ी आउटिंग भी होगी और मानसिक दबाव कम होगा। यह जरूरी तो है, क्योंकि बच्चा घर में कब तक रहेगा और इससे उनकी एजुकेशन भी मॉनिटर भी हो सकेगी।'
  3. राजस्थान के जयपुर के क्लीनिकल साइकैट्रिस्ट डॉक्टर विजय चौधरी छोटे बच्चों के मामले में ऑनलाइन एजुकेशन के पक्षधर नहीं हैं। वे भी लर्निंग पॉड्स के कॉन्सेप्ट को अच्छा मानते हैं। उन्होंने कहा कि इससे लोगों के बीच इंटरेक्शन बढ़ेगा और बच्चे नया कल्चर भी जानेंगे।

क्या लर्निंग पॉड खर्चीला है?
अमेरिका में लर्निंग पॉड्स काफी चर्चा में है, लेकिन वहां भी पैरेंट्स को यह आइडिया खर्चीला होने के कारण बच्चों की पढ़ाई बिगड़ने का डर लग रहा है। उनका कहना है कि लर्निंग पॉड्स की सुविधा मिलने वाले बच्चों की तुलना में अकेले पढ़ाई कर रहे बच्चे पिछड़ सकते हैं।

डॉक्टर शिखा के मुताबिक, भारत में भी यह आइडिया औसत परिवार की जेब पर भारी पड़ेगा। विदेशों की तरह ही भारत में यह परेशानी दोहरा सकती है।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
America's 'learning pods' idea resembles India's coaching culture, children can be left behind due to financial problems


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3aY2TeT

No comments:

Post a Comment