हंसाने को इबादत से भी ऊंचा माना गया है। इस पर शायर निदा फाजली ने लिखा है, घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए।
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