जिनका दुख लिखने की खातिर मिली न इतिहासों की स्याही/ जग वालों को नाखुश करके मैंने उनकी भरी गवाही/ कंधे चार मिले ना जिनको, जिनकी उठी न अर्थी भी/खुशियों की नौकरी छोड़कर मैं उनका बन गया सिपाही...।
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