कोरोना और ठंड का समय चल रहा है। यह समय हेल्थ को लेकर सतर्कता रखने का है। इस समय सीजनल बीमारी का खतरा भी ज्यादा रहता है। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। अगर बच्चों में सर्दी-खांसी और हाई डिग्री बुखार की शिकायत है, तो उसे नजरअंदाज न करें। हालांकि, यह प्रॉब्लम बहुत ज्यादा दिन तक नहीं रहती, लेकिन इसी के कुछ संक्रमण बच्चों को लंबे समय तक परेशान कर सकते हैं। इन्ही प्रॉब्लम में एक रूमैटिक फीवर है।
भोपाल के डॉ. तेजप्रताप तोमर बताते हैं कि यह बीमारी बच्चों में होती है। यह उनके इम्युन सिस्टम पर असर डालती है। इससे उनका शारीरिक, मानसिक विकास रुक जाता है। यदि सही से ट्रीटमेंट नहीं मिल पाता है, तो आगे जाकर प्रॉब्लम खड़ी कर सकता है। आइए जानते हैं कि यह रूमैटिक फीवर क्या होता है? इसके लक्षण क्या हैं?
रूमैटिक फीवर क्या है?
डॉ. तेजप्रताप तोमर के मुताबिक, रूमैटिक फीवर एक इंफ्लैमेटरी बीमारी है। इसकी वजह से होने वाले इन्फेक्शन को गले का इन्फेक्शन या स्कारलेट फीवर कहा जाता है। अगर इसका समय पर ट्रीटमेंट नहीं किया जाता है, तो रूमैटिक फीवर होने के चांस बढ़ जाते हैं। रूमैटिक फीवर की प्रॉब्लम पांच से 15 साल के बच्चों में बहुत कॉमन है। यह प्रॉब्लम स्ट्रेप्टोकॉकस बैक्टीरिया की वजह से होती है। जो आगे जाकर बेहद खतरनाक रूप ले सकती है। इससे इम्युन सिस्टम पर नकारात्मक असर होता है। जो शरीर के अंदर के टिश्यू को खत्म करने लगते हैं। स्किन इंफैक्ट होने लगती है। हार्ट वाल्व और हार्ट फैलियर के अलावा स्ट्रोक की समस्या हो सकती है। यह आपके मेंटल हेल्थ पर भी असर करती है।
रूमैटिक फीवर के लक्षण
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रूमैटिक फीवर के लक्षण कई तरह के हो सकते हैं। बीमारी के समय यह बढ़ भी सकते हैं। इसमें गले में खराश, बुखार के अलावा जोड़ों में दर्द रहना, जी मिचलाना जैसी प्रॉब्लम आम है।
किन वजहों से होता है रूमैटिक फीवर?
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ग्रुप A स्टेप्टोकॉकस बैक्टीरिया से सबसे पहले गले में इन्फेक्शन होता है। इससे गले में खराश होने लगती है। इसके बाद शरीर में फीवर रहने लगता है। ग्रुप A स्ट्रेप्टोकॉकस बैक्टीरिया स्किन और शरीर को नुकसान पहुंचाता है। इस बैक्टीरिया में एक प्रोटीन होता है। इस तरह के प्रोटीन शरीर के टिश्यूज में भी पाया जाता है। इस वजह से इम्युन सिस्टम सेल बैक्टीरिया से लड़ने में सक्षम है।
रूमैटिक फीवर के जोखिम क्या हैं?
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अगर रूमैटिक फीवर के जोखिम पर नजर डालें तो इसके कई फैक्टर हैं। फैमिली हिस्ट्री इसका एक बहुत बड़ा फैक्टर है। जीन्स की भी वजह से भी यह बीमारी हो सकती है। स्ट्रेप्टोकॉकस बैक्टीरिया के कुछ स्ट्रेन की वजह से भी यह प्रॉब्लम बढ़ जाती है। इसका इनवायरमेंट से भी कनेक्शन है। साफ-सफाई न रखना, पीने का पानी साफ न होना और भीड़ के इलाकों में रहना भी इसके रिस्क फैक्टर बढ़ाने में मदद करते है।
यह तीन टेस्ट जरूरी
1. ब्लड टेस्ट कराएं
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अगर इसके लक्षण नजर आने लगें तो हमें सबसे पहले ब्लड टेस्ट कराना चाहिए। अगर इसमें स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया का पता चल जाता है तो डॉक्टर आगे किसी भी तरह के टेस्ट के लिए नहीं कहेंगे। सी-रिएक्टिव प्रोटीन और एरिथ्रोसाइट सेडीमेंट्रेशन रेट के लिए डॉक्टर ब्लड टेस्ट करते हैं।
2. ECG या EKG कराएं
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इसका मतलब होता है, इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी टेस्ट, इसे ECG या EKG भी कहा जाता है। इसमें इलेक्ट्रिक सिग्नल्स की मदद से हार्टबीट को रिकॉर्ड किया जाता है। इसमें डॉक्टर इसके सिग्नल पैटर्न को देखते हैं, जो हार्ट में आई स्वलिंग की जानकारी देती है।
3. इको-कार्डियोग्राम टेस्ट कराएं
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हार्ट की लाइव एक्शन इमेज को दिखाने के लिए साउंड वेव को यूज किया जाता है। इसमें हार्ट से जुड़ी प्रॉब्लम का पता लगाया जाता है।
इसके इलाज के तरीके क्या हो सकते हैं?
1. पेनिसिलिन या एंटीबायोटिक
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इसके इलाज के लिए डॉक्टर पेनिसिलिन या एंटीबायोटिक लिखते हैं। इसके बाद डॉक्टर गठिया के बुखार का इलाज करने के लिए एक तरह का एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट भी शुरू कर सकता है। इसके अलावा जिनके हार्ट में स्वलिंग होती है, उन्हें डॉक्टर 10 साल या उससे अधिक समय तक एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट लेने की सलाह दे सकते हैं।
2. एंटी इंफ्लैमेटरी ट्रीटमेंट
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डॉक्टर स्वलिंग, फीवर और दर्द को कम करने के लिए पेनकिलर दे सकते हैं। ये एंटी इंफ्लैमेटरी ट्रीटमेंट में आ सकते हैं। ट्रीटमेंट डॉक्टर की सलाह के आधार पर ही कराएं।
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