भारत सरकार ने पहली बार टाइम यूज सर्वे (टीयूएस) कराया है। इसमें यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि हमारे देश में लोगों के 24 घंटे कैसे बीतते हैं। कितना समय ऐसे कामों में जाता है, जिसका कोई भुगतान नहीं मिलता। वहीं कितना समय सोशलाइजिंग एक्टिविटी में जाता है। मुख्य उद्देश्य था, महिलाओं और पुरुषों की पेड और अनपेड एक्टिविटी में भागीदारी।
इस सर्वे का नतीजा यह निकलकर आया कि ज्यादातर पेड वर्क पुरुष करते हैं और महिलाओं का ज्यादातर वक्त ऐसे कामों में चला जाता है, जिसका उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता। 81.2% महिलाएं रोज ही तकरीबन 5 घंटे बिना भुगतान वाले घरेलू कामों में लगी रहती हैं। जबकि पुरुषों की भागीदारी सिर्फ 26.1% और वह भी औसत एक घंटा 37 मिनट। आइए जानते हैं इस सर्वे और इसके नतीजों के बारे में...
टाइम यूज सर्वे आखिर होता क्या है?
- टाइम यूज सर्वे एक तरह से लोगों का टाइम ऑडिट है। इससे पता चलता है कि बच्चों की देखभाल, घरेलू कामों, परिवार के सदस्यों की सेवाओं में महिलाओं का कितना समय जाता है। जाहिर है, सारे काम घर और परिवार से जुड़े हैं तो उनका भुगतान भी नहीं होता।
- यह बताता है कि सीखने, सोशलाइजिंग, मनोरंजन गतिविधियों, खुद की देखभाल के लिए पुरुष और महिलाएं कितना समय दे रही हैं। इन सर्वे के नतीजे गरीबी, जेंडर इक्विलिटी और ह्यूमन डेवलपमेंट पर पॉलिसी बनाने में मदद करते हैं।
भारत में क्या यह सर्वे पहली बार हुआ है?
- पिछले तीन दशक से कई विकसित देश टाइम यूज सर्वे कर रहे हैं। अमेरिका 2003 से हर साल यह सर्वे कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया में 1992 में पहली बार फुल-स्केल सर्वे कराया गया था। कनाडा भी 1961 से इसी तरह के सर्वे करा रहा है। इसके अलावा, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इजराइल ने भी ऐसे ही सर्वे कराए हैं।
- एनएसएस रिपोर्ट- टाइम यूज इन इंडिया 2019 इसी हफ्ते 29 सितंबर को जारी हुई। इसमें जनवरी से दिसंबर 2019 के बीच देशभर के 1.39 लाख परिवारों में सैम्पल सर्वे कराया गया। इसमें 6 साल से ज्यादा उम्र के करीब 4.47 लाख लोगों का टाइम यूज जानने की कोशिश की गई है।
इस रिपोर्ट के प्रमुख नतीजे क्या हैं?
2,140 पेज की इस रिपोर्ट में भारतीयों की दिनभर की अलग-अलग गतिविधियों में भागीदारी का डेटा मिलता है। यह भी पता चलता है कि वह औसत कितना समय इन एक्टिविटी को देते हैं। इसमें कई तरह की रोचक जानकारी भी सामने आई है। गांवों और शहरों में महिलाओं और पुरुषों के सोने, पढ़ने, सोशलाइजिंग करने का वक्त भी पता चला है।
महिलाओं का ज्यादातर वक्त ऐसे काम में जाता है, जिसका उन्हें भुगतान नहीं मिलता। वहीं, पुरुषों की भागीदारी की दर भुगतान वाले रोजगार यानी नौकरी, खेती, मछली पालन, माइनिंग आदि में 57.3% है। वहीं, ऐसे कामों में महिलाओं की भागीदारी दर सिर्फ 18.4% है।
भुगतान वाले कामों पर पुरुषों के 7 घंटे 39 मिनट जाते हैं जबकि महिलाओं के सिर्फ 5 घंटे 33 मिनट। जब बात घर के बिना भुगतान वाले कामों की आती है तो महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाती है।
वैसे, रोचक तथ्य यह सामने आया कि जब बुजुर्गों की देखभाल की बात आती है तो शहर हो या गांव महिलाओं से ज्यादा वक्त पुरुष दे रहे हैं।
बड़ी संख्या में भारतीय सोशलाइज रहते हैं और अपना वक्त सुविधाओं के बीच बिताते हैं। हालांकि, बहुत कम भारतीय ही वॉलेंटियर जैसे अनपेड कामों में भाग लेते हैं। आम धारणा है कि महिलाएं ज्यादा सोशल होती हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि गांवों में हालात उलट है। पुरुष वहां सोशलाइजिंग के लिए महिलाओं से भी ज्यादा वक्त देते हैं। हालांकि, शहरों में महिलाओं और पुरुषों का सोशलाइजिंग के लिए दिया जाने वाला समय बराबर है।
एक रोचक तथ्य यह भी सामने आया कि बच्चों की देखभाल में महिलाओं का वक्त ज्यादा जाता है, लेकिन जब घर के बड़े-बुजुर्गों की सेवा की बात आती है तो उसमें पुरुषों की भागीदारी ज्यादा होती है। फिर चाहे वह शहर हो या गांव। यहां तो यह भी देखने में आया कि गांव में शहरों से ज्यादा वक्त बुजुर्गों की देखभाल में दिया जा रहा है।
रोजगार हो या कोई और काम, जब बात घर से बाहर जाकर काम करने की आती है तो उसमें जिम्मेदारी पुरुषों पर ज्यादा आती है। पुरुषों का करीब एक घंटा परिवहन में लग जाता है। वहीं, महिलाओं के रोज औसतन 22 से 24 मिनट परिवहन में जाते हैं।
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